mahakumbh 2025 : भागवत कथा का अधिकार सिर्फ पुरुषों को – स्वामी अनंताचार्य

चित्रकूट के स्वामी अनंताचार्य को mahakumbh 2025 के दौरान मिली जगदगुरु की उपाधि
जानकी कुंड, चित्रकूट के स्वामी अनंताचार्य को महाकुंभ 2025 (mahakumbh 2025) के दौरान जगदगुरु की उपाधि दी गई। महाकुंभ में श्रीधराचार्य के शिविर में आयोजित कार्यक्रम में यह उपाधि दी गई। इस अवसर पर अतुल्य समाचार ने स्वामी अनंताचार से बातचीत की। मूलतः कौशाम्बी के रहने वाले स्वामी अनंताचार्य की शिक्षा दीक्षा प्रयाग में ही हुई थी। यहां से वृंदावन जाकर भागवत की शिक्षा ली व भागवत कथा कहने लगे। पढ़िए बातचीत के प्रमुख अंश-  

विरक्ति का भाव कैसे आ गया

विरक्ति भाव कोई अपने आप नहीं, यह पूर्व से होता है। यह कोई बनावटी नहीं होता है। यह पूर्व में भागवत विधान होता है। सहज वैराग्य होता है क्योंकि जो कोई बनता है वह ज्यादा दिन तक नहीं चलता है। जो वास्तविक वैराग्य होता है, भीतर से वैराग्य का अनुभव होता है वह अपने आप जागृत होता है।

कितने वर्ष हो गए आपको वैराग लिए हुए

लगभग 25-30 वर्ष

कहां से दीक्षा ली

हमने प्रयागराज में श्री बैकुंठ धाम आश्रम अलोपीबाग से दीक्षा ली। यही से हमारी शुरुआत हुई। यही हमारा गुरु स्थान है। यहां से फिर हम वृंदावन धाम गए। वहां से शेष शिक्षा ग्रहण की। वृंदावन में हम तीन चार वर्ष रहे।

आपने रामानुज संप्रदाय ही क्यों चुना

देखिए इश्वर की आराधना तो किसी भी रूप संप्रदाय में रहकर की जा सकती है। किसी भी तरीके से हो सकती है। इसके लिए कोई बाध्यता नहीं है। इतना जरूर है कि किसी भी कार्य को करने से पहले थोड़ा विचार करना चाहिए और अपनी विचारधारा के अनुसार कार्य का चयन करना चाहिए। शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने के बाद, शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद, महापुरुषों का सानिध्य प्राप्त करने के बाद रामानुज संप्रदाय में रहते हए हमें ऐसा अनुभव हुआ की विद्वान आचार्य के बीच रहकर के हमें ऐसा कुछ सीखने और करने का अवसर मिलेगा जिससे हम समाज में कुछ कर सकते है।


रामानुज संप्रदाय और रामानंद संप्रदाय में भेद क्या है

कोई भेद नहीं है। वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत ही है। सब एक ही हैं। किसी भी संप्रदाय में रहकर भगवान के उपासना की जा सकती है

कितने वर्षों से भागवत कथा कर रहे हैं

कथा करते हुए हमको लगभग 20 वर्ष हो चुके हैं

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यह तय कैसे होता है कि हम रामायण करेंगे, भागवत करेंगे या देवी भागवत करेंगे

यह तय करने की बात नहीं है। यह अपना विषय होता है। अगर आपको इंग्लिश की ज्ञान नहीं है तो आप इंग्लिश कैसे पढ़ा सकते हैं। इसलिए जिसमें आपका मन लगता हो, जो विषय आपने पढ़ा हो वही आप समझा सकते हैं। इसलिए पहले अपने विषय में तत्पर हूं। फिर मार्गदर्शन दें चाहे वह राम कथा हो या अन्य कोई कथा।
एकेव ब्रह्म द्वितीयो नास्ती। आप कोई भी पुराण, किसी भी शास्त्र का अध्ययन करेंगे, सब में वस्तुतः एक ही बात कही गई है। सब में एक ही बात कही गई है कि भगवान की उपासना किसी भी प्रकार से करें।

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जगद्गुरु होने का क्या फायदा है

यह फायदे के लिए नहीं है। यह तो समाज में सनातन धर्म और समाज के कल्याण के लिए एक जिम्मेदारी है। उसका निर्वाह करने के लिए, इसका उत्थान करने के लिए समाज में धर्म का प्रचार करने के लिए विद्वान आचार्यो ने इस प्रकार की व्यवस्था बनाई है। रामानुज संप्रदाय में रामानुज स्वामी मुख्य प्रवर्तक रहे। वही परंपरा आज से नहीं अनादिकाल से चलती चली जा रही है।

आज भी बड़े-बड़े विद्वान धर्म आचार्य इसका महाकुंभ में अपने-अपने शिविर लगाए हुए हैं। अभी आपने देखा है शोभा यात्रा के माध्यम से संगम तक सभी रथ के द्वारा संगम दर्शन के लिए गए सब ने उनका दर्शन किया। कितने विद्वानों का एक साथ दर्शन सभी लोगों ने किया तो इनके माध्यम से यह सब प्राप्त होता है या परंपरा आज की नहीं है अनादि काल से चली आ रही है

जगद्गुरु बनने के लिए क्या योग्यता चाहिए

इसकी योग्यता क्या है। योग्यता तो बहुत कुछ हो सकती है लेकिन इतना आवश्यक है कि जो कम से कम इतना योग्य हो कि वह शास्त्रों के अनुसार समाज में अनुकूल मार्गदर्शन दे सके। कहीं ऐसा ना हो कि प्रतिकूल व्यवहार करके लोगों को भ्रमित कर दे। इसका ध्यान देना आवश्यक होता है। किसी विशेष पद को प्रदान करने के पहले ऐसा ध्यान रखना आवश्यक है. ऐसा नहीं है कि केवल पद प्रदान करें और यह भी ना देखें। ध्यान दें कि हमें पत्र प्रदान किया तो या व्यक्ति आगे चलकर समाज मैं कौन सी व्यवस्था दे पाएंगे। उसके लिए कम से कम आचार्य होना चाहिए संस्कृत में उसके लिए योग्यता है ऐसे अशिक्षित को जगतगुरु नहीं बनाई जा सकता है। जगद्गुरु की योग्यता को धर्म आचार्य तय करते हैं।

एक भी महिला जगतगुरु नहीं बन रही है, क्या महिलाओं पर रोक है

नहीं रोक की बात नहीं है।  व्यासपीठ का अधिकार महिलाओं को नहीं है। लेकिन आपने देखा होगा टीवी चैनल में जगह-जगह महिला कथा कर रही है उचित नहीं है भागवत कथा हो या कोई भी महिलाओं को व्यस्त पर बैठकर कथा करने का अधिकार नहीं है। भागवत कथा का अधिकार पुरुष वर्ग को है। महिलाएं सत्संग कर सकती है। सत्संग करना चाहिए।

शास्त्रों में कहां लिखा है कि महिलाओं को व्यास पीठ पर बैठने का अधिकार नहीं है

शास्त्र में है लेकिन उसकी कोई न माने तो अलग बात है। श्रीमद् भागवत पुराण में ही लिखा है कि महिलाओं को व्यासपीठ में नहीं बैठना चाहिए। कई जगह ऐसा उल्लेख मिलता है, लेकिन आज के परिवेश में लोग लाभ के दृष्टि में, जहां सम्मान मिलता है, वहा शास्त्र की अनदेखी कर देते है। अपने सम्मान प्रतिष्ठा को देखते हुए लोग शास्त्र का ध्यान नहीं देते हैं। व्यास पीठ पर महिलाओं को वर्जित किया गया है। सत्संग करें पर व्यास पीठ पर ना बैठे।

 

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