Mahakumbh2025 : महामंडलेश्वर ः तप नहीं धन बल का चलता है जोर

दशको पुराने संत व साध्वी पैसों के अभाव में नहीं बन पा रहे महामंडलेश्वर (Mahamandaleshwar)
Mahakumbh2025 : महामंडलेश्वर ः तप नहीं धन बल का चलता है जोर

तीर्थराज प्रयाग के प्रांगण में mahakumbh2025 के दौरान बसे महाकुंभ नगर में इस समय महामंडलेश्वर (Mahamandaleshwar) बनने की धूम है। महाकुंभ के पहले 17 दिनों में किन्नर अखाड़़े के साथ मिलकर 13 अखाड़़ों ने 50 से अधिक महामंडलेश्वर बना दिए हैं। आखिर कैसे बनते हैं महामंडलेश्वर। क्या इसमें जप तप का योगदान होता है या कोई और  मानक है जिसे पूरा करने पर यह पद दिया जाता है। ममता कुलकर्णी कैसे बन गई महामंडलेश्वर। किशोरावस्था से साध्वी बनी चित्रकूट की महंत मीरा हों या काशी की महंत कृष्णा, इनको आखिर चार दशक से अधिक का समय सन्यस्त जीवन में बिताने के बावजूद अब तक महामंडलेश्वर क्यों नहीं बनाया गया। क्या महामडलेश्वर बनने के लिए सिर्फ पैसा होना ही जरूरी है.. देखिए रिपोर्ट (यह तथा ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए रिपोर्ट)

हमारे पास पूंजी नहीं महामंडलेश्वर (Mahamandaleshwar) बनने के लिए ः साध्वी मीरा

मात्र 16 वर्ष की आयु में घर का त्याग कर साध्वी बनी महंत मीरा को सन्यासी जीवन में 45 वर्ष बीत चुके है। कथा वाचक रहीं महंत मीरा महामंडलेश्वर बनने के नाम से पीछे हट जाती हैं। कहतीं हैं कि महामंडलेश्वर बनने में काफी पैसा लग जाता है। करीब 25 लाख खर्च होते हैं. दिगंबर अखाड़े की महंत मीरा थोड़ी निराशा के साथ कहती है कि अब इतनी पूंजी हमारे पास है नहीं कि हम इतना पैसा देकर के महामंडलेश्वर बन सके।

Mahakumbh2025 : दक्षिणा में देने पड़ते हैं पैसे

साध्वी मीरा खाक चौक की सबसे वरिष्ठ महिला संत हैं। उन्हें पूरी प्रक्रिया की अच्छी जानकारी है। अखाड़ों का बचाव करते हुए साध्वी मीरा कहती हैं कि वैष्णव, उदासीन और संन्यासी अखाड़े अब महिलाओं को महामंडलेश्वर बनाने लगे हैं। 2019 में वैष्णव अखाड़ों ने भी कुछ महिला साध्वियों को महामंडलेश्वर बनाया था। इस तरह सन्यासी अखाड़ों की तरह वैष्णव अखाड़ों में भी महिलाओं को महामंडलेश्वलर बनाने का नियम तो खुल गया है लेकिन दक्षिणा के लिए पैसे लग रहे हैं। इसमें परंपरा के अनुसार दक्षिणा देने के लिए 25 लाख रुपए तक लगता है। अखाड़े में जितने भी महामंडलेश्वर होते हैं, उन सबको दक्षिणा देना पड़ता है। इतने पैसों का अभाव है। इसलिए महामंडलेश्वर नहीं बन सकते।

KAISE BANATE HAI MAHAMANDALESHWARमहामंडलेश्वर (Mahamandaleshwar) बनने से क्या मिलेगा

महंत मीरा का कहना है कि अगर हम महामंडलेश्वर (Mahamandaleshwar) नहीं हैं तो हमें शाही स्नान में छत्र चवर रथ के साथ नहाने अपने समाज के साथ नहीं जा सकते है। अब कोई संत अगर कह दे कि आप अपनी गाड़ी हमारे पीछे लगा ले और अंदर बैठी रहे तो अंदर बैठकर हम उनके साथ शाही स्थान में जा सकते हैं। महंत मीरा का कहना है कि पैसा होगा तभी हम महामंडलेश्वर बनेंगे बाकी हम भले ही वरिष्ठ हैं। बहुत पुरानी हैं। बहुत दिन से मेरा कैंप लगता है। भले मैं अपने चित्रकूट मंडल से महंत बन गई हूं पर महामंडलेश्वर नहीं बन सकती। पैसे के कारण बहुत सी ऐसी साध्वी है जो महंत या महामंडलेश्वर नहीं बन पा रही हैं। दक्षिणा नहीं देंगे तो अखाड़े महामंडलेश्वर नहीं बनाएंगे।

भाजपा की पूर्व नेता व 45 वर्ष से सन्यासी साध्वी को भी महामंडलेश्वर बनने का इंतजार

IMG 20250116 161516 Mahakumbh2025 : महामंडलेश्वर ः तप नहीं धन बल का चलता है जोरमहामंडलेश्वर बनने के लिए सबसे जरूरी है कि आपके पास पैसा हो। पैसा नहीं तो महामंडलेश्वलर का पद नहीं मिल सकता। कम से कम 72 वर्ष की साध्वी सिद्धेश्वरी का कहना तो यही है। 45 वर्ष से सन्यस्त जीवन जी रही साध्वी सिद्धेश्वरी ht$b का कहना था कि एक बार हरिद्वार कुंभ में महामंडलेश्वर बनने का अनुरोध करने गए थे तो हमें मना कर दिया गया। कहा कि आप किसी साधू के अधीन बन जाएं। उसमें भी पैसा लगेगा पर हमने मना कर दिया। हमें महामंडलेश्वर बनने का शौक नहीं है। बात सिर्फ इतनी है कि शाही स्नान में हम सब भी अपने वाहन से छत्र चंवर के साथ जाएं। अपने समाज में सम्मान से रहें. साध्वी सिद्धेश्वरी का कहना था कि सरकार को चाहिए कि साध्वियों के लिए शाही स्नान में अलग समय दे। जिससे सारी साध्वियां एक साथ बस में बैठकर स्नान करने जा सकें।

62 वर्ष से साध्वी पर नहीं बन सकी महामंडलेश्वर

अब मिलिए महंत कृष्णा दासी से। वाराणली की यह वयोवृद्ध महंत 78 वर्ष से अधिक उम्र की हैं। मूलतः चित्रकूट के मानिक पुर की रहने वाली महंत कृष्णा 16 वर्ष की थी तभी घर छोड़ कर वैरागी हो गईं थीं। पिछले 62 वर्ष से साध्वी हैं। पहले कथा सुनाती थी पर अब उम्र अधिक हो गए है, इसलिए कथा बंद कर दिया है। महंत कृष्णा वैष्णव अखाड़ों की महिलाओं के साथ भेदभाव की नीति पर खासी आक्रोशित है। इनका कहना है कि  महिलाएं क्या नहीं कर सकतीं। सती अनसूया को देख लीजिए। ब्रह्मा विष्णु को भी बालक बनाकर सुला दिया, तो हमारी संस्कृति में हमेशा से यह भावना रही है कि महिला क्या नहीं कर सकती। इसके बावजूद निर्वाणी निर्मोही व दिगंबर अखाड़ा यह महिलाओं को देखना नहीं चाहते हैं। कहते हैं महिलाएं साथ में नहीं आएंगी। शाही स्नान को महिलाएं नहीं जाएगी। हम लोगों को पास ही नहीं देते। बहिष्कार कर देते हैं। कह देते हैं कि पैदल चलो। कितना पैदल चलेंगे यह बताइए।महंत कृष्णा कहती हैं कि महिला तुम्हारे साथ कंधे पर कंधा घर के चल रही है। तुम्हारे आश्रम संभाल रही है तो महिलाओं को तुम लोग सम्मान क्यों नहीं देते हो। महिलाओं को नहाने का समय क्यों नहीं देते हो। हमने अपने अखाड़े में जाकर कहा तो बोले महिला गाड़ी में नहीं जाएंगी, पैदल चलो। तो हम लोग सब चुप हो जाते हैं हम लोगों को हमारे अखाड़े समय ही नहीं दे रहे। हमारा अखाड़ा हमारे संप्रदाय का साधु समाज हमको बहिष्कार करते हैं।

महिलाओं काे सन्यासी बनने का ही अधिकार नहीं ः महामंडलेश्वर राम लखन दास मानस केसरी

वैष्णव अखाड़े के महामंडलेश्वर राम लखन दास मानस केसरी तो महिलाओं के सन्यासी बनने की बात को ही खारिज कर देते हैं, महामडलेश्वर तो दूर की बात है. उनका कहना है कि भगवान शंकराचार्य ने सबसे पहले मंडन मिश्र की पत्नी भारती को साध्वी बनाया लेकिन सन्यासी नहीं बनाया.  मंडन मिश्र को सन्यासी बनाया, त्रोटकाचार्य को सन्यासी बनाया। सुरेश्वराचार्य को सन्यासी बनाया। महिलाओं को सन्यास लेने का शास्त्रीय अधिकार नहीं है। मानस केसरी के अनुसार महिलाएं पिंडदान स्वयं कर नहीं सकती. पिंडदान करने व कराने का जो अधिकार है वह उन्हीं को दिया गया है जिसके शिखासूत्र हों. महिलाओं के शिखासूत्र नहीं होते। महिलाओं का यज्ञोपवीत नही होता तो वह सन्यासी कैसे बन सकती हैं।

आजाद भारत की पहली महिला महामंडलेश्वर महानिर्वाणी ने बनाया ः रवीन्द्र पुरी

वैष्णव अखाड़ों में भले ही महिलाओं को महामंडलेश्वर बनाने को लेकर तमाम अड़चने हों, नागा सन्यासियों में ऐसा नहीं है। महानिर्वाणी अखाड़े के अध्यक्ष महंत रवीन्द्र पुरी का कहना है कि महिला महामंडलेश्वर बनाने की परंपरा भारत में ऋषि कल से चली आ रही है। आधुनिक काल में श्री पंचायती महानिर्वाणी ने ही सबसे पहले इसको प्रारंभ किया था। हमारे यहां गीता भारती माताजी है। इनका नाम है संतोष पुरी। उनको आठ वर्ष की आयु में ही गीता के पूरे 18 अध्याय कंठस्थ थे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उनको सम्मानित करते हुए गीता भारती की उपाधि दी थी। उनको महानिर्वाणी अखाड़े ने आजाद भारत की पहली महिला महामंडलेश्वर बनाया।

सिर्फ पैसा नहीं, ज्ञान व सामाजिक प्रतिष्ठा भी महामंडलेश्वर बनने के लिए जरूरी

महंत रवीन्द्र पुरी के अनुसार महामंडलेश्वर बनने के लिए सिर्फ पैसा ही जरूरी नहीं है वरन शिक्षा, ज्ञान व सामाजिक प्रतिष्ठा भी जरूरी है। शास्त्रों में पारंगत होने के बाद ही महामंडलेश्वर के पद से सम्मानित किया जाता है। महामंडलेश्वर के लिए कम से कम शास्त्रीय अथवा एक विषय से आचार्य होना चाहिए। इसके बाद उनके अंदर आचरण की शुद्धता होनी चाहिए। उसका अपना कोई मठ आश्रम मंदिर हो। धर्म प्रेमी जनता उनकी कथा प्रवचन आदि सुनना पसंद करती हो। महामंडलेश्वर बनाने के बाद उसकी प्रतिष्ठा के साथ में संस्था के प्रतिष्ठा जुड़ जाती है। इसलिए इन सब चीजों का ध्यान रखा जाता है। कोई वरिष्ठ महामंडलेश्वर है, अगर उनके शिष्य विद्या में उतने पारंगत नहीं है पर गुरु परंपरा का पालन कर रहे हैं तो उन्हें भी महामंडलेश्वर बना दिया जाता है।

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दक्षिणा देने के लिए धन की आवश्यकता

महंत रवीन्द्र पुरी का कहना था कि महामंडलेश्वर के लिए चयनित व्यक्ति का विधिवत धर्म ध्वज के नीचे पांच ब्राह्मणों के द्वारा अभिषेक किया जाता है। वैदिक परंपरा के अनुसार फिर उनकी तरफ से भंडारा होता है, समष्टि होती है। इसके बाद गुरु महाराज का सूक्ष्म रूप में वह उनकी जो श्रद्धा होती है उस हिसाब से वह धन देते हैं या फिर या फिर पदार्थ देते हैं। यहां तो एक रुपये व नारियल में भी महामंडलेश्वर बने हैं जैसे प्रखर जी महाराज। उज्जैन महाकुंभ 2004 में उन्हें महामंडलेश्वर बनाया गया था। उनके सामाजिक कार्योॆ को देखते हुए यह निर्णय लिया गया था। पूरे कुंभ मेला में वह निशुल्क हॉस्पिटल चला रहे थे। नर सेवा ही नारायण सेवा। इस तरह जो लोग अच्छे काम करते हैं उन्हें अखाड़े द्वारा सम्मानित किया जाता है। महामंडलेश्वर का जो पद है वह आजीवन का पद है। पदाधिकारी बनने के बाद उनके लिए कुछ मान दंड तय किए गए हैं।इनका अनुपालन न करने पर उन्हें निष्कासित भी किया जा सकता है।

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