महाकुंभ 2025 (mahakumbh2025) की शुरुआत में नगर प्रवेश के दौरान निंरजनी अखाड़े के जुलूस में संतों के रथ पर साध्वी वेश में सवार रही हर्षा रिछारिया की तस्वीर ने सनसनी मचा दी थी। एक खूबसूरत, आकर्षक मॉडल को साध्वी वेश में देख कर बड़ा हंगामा मच गया था। इसी के साथ ही स्टीव जाब्स की पत्नी पामेला जाब्स भी इसी महाकुंभ 2025 में साध्वी बनती नजर आईं। ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर बनाना हो या दर्जनों अन्य महिलाओं को सन्यासी बनाना, महिलाएं महाकुंभ में छाई रहीं। इन सबके बीच वैष्णव संतों ने बड़ा जबर्दस्त आक्रोश जताया है। वैष्णव संतों का कहना है कि महिलाओं को तो सन्यास लेने का अधिकार ही नहीं है। ऐसे में महामंडलेश्वर या जगद्गुरु बनने की तो बात ही नहीं है।
वैष्णव अखाड़ों में गिनती के महामंडलेश्वर, एक भी जगदगुरु नहीं
देश के तेरह अखाड़ों में तीन वैष्णव अखाड़ें हैं। इनमें निर्वाणी, निर्मोही व दिगंबर अखाड़ा शामिल है। इन अखाड़ों से जुड़ी साध्वियों ने कई बार महिलाओं काे महामंडलेश्वर बनाने की मांग की है। पिछले कुछ वर्षों में कुछ महिलाओं को महामंडलेश्वर बनाया भी गया था पर यह संख्या गिनती की ही रही है। कुल मिलाकर वैष्णव अखाड़े महिलाओं को महामंडलेश्वर बनाने के विरोधी ही रहे हैं। दूसरी ओर आचार्यों में जगद्गुरु की पदवी पर एक भी महिला आज तक आसीन नहीं हुई है। हालात यह हैं कि देश के दो बड़े संप्रदाय रामानुज व रामानंदी में एक भी महिला जगदगुरु नहीं है। वैष्णव संतों का कहना है कि महिलाओं को सन्यासी बनने का अधिकार ही नहीं है। इतना ही नहीं, कथाकारों, आचार्यों का तो यहां तक कहना है कि महिलाओं काे व्यास पीठ पर बैठकर कथा सुनाने का ही अधिकार नहीं है तो जगदगुरु कैसे बन सकती हैं।
आदि शंकराचार्य ने ही लगा रखी है रोक
दिगंबर अखाड़े के महामंडलेश्वर राम लखन दास मानस केसरी का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने ही महिलाओं को सन्यासी बनाने पर रोक लगा रखी है। आदि शंकराचार्य ने मठाम्नाय पुस्तक लिखी है। इसमें उन्होंने सन्यासी बनने के नियम बताए हैं। भगवान शंकराचार्य ने अपने समय में सबसे पहले मंडन मिश्र की पत्नी भारती को साध्वी बनाया लेकिन सन्यासी नहीं बनाया. उन्होने मंडन मिश्र को सन्यासी बनाया, त्रोटकाचार्य को सन्यासी बनाया। सुरेश्वराचार्य को सन्यासी बनाया पर किसी भी महिला को सन्यासी नहीं बनाया क्यों कि महिलाओं को सन्यास लेने का शास्त्रीय अधिकार नहीं है।
शिखा सूत्र, जनेऊ न होने से नहीं बन सकतीं सन्यासी
दिगंबर अखाड़े के महामंडलेश्वर राम लखन दास मानस केसरी का कहना है कि सन्यास लेने से पूर्व यज्ञोपवीत का त्याग करना पड़ता है। साथ ही शिखा सूत्र का भी त्याग करना पड़ता है। महिलाओं के पास न यज्ञोपवीत होता है न शिखासूत्र। महिलाओं को मुंडन कराने का भी अधिकार नहीं है. उत्तर व दक्षिण भारत की समस्त संत परंपराओं में केवल नयनार संत समुदाय ने ही महिलाओं काे मुंडन कराने का अधिकार दिया है, अन्य किसी ने भी नहीं। इतना ही नहीं, महिलाएं अपना पिंडदान स्वयं नहीं कर सकतीं। इन स्थितियों के बीच महिलाएं सन्यासी बन कैसे सकतीं हैं।
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रजस्वला काल में पूजा भी वर्जित, नहीं बन सकतीं जगदगुरू या महामंडलेश्वर
दिगंबर अखाड़े के महामंडलेश्वर राम लखन दास मानस केसरी का कहना है कि रजस्वला काल में महिलाएं पांच दिन के लिए त्याज्य मानी जाती है। त्याज्य काल में वह मंच पर बैठेंगी कैसे। त्याज्य काल में न तो वह तिलक लगा सकती है, न माला छू सकती है न कोई किताब छू सकती है यहां तक कि गंगा जल तक का स्पर्श नहीं किया जा सकता तुलसी का स्पर्श नहीं किया जा सकता तो वह करेगी क्या। ऐसे में पद की गरिमा क्या रहेगी।
श्रीमद भागवत में भी है महिलाओं के व्यास पीठ पर बैठने तक की मनाही चित्रकूट के जगदगुरु अनंताचार्य का भी कहना था कि महिलाओं को व्यास पीठ पर बैठने तक की मनाही है। श्रीमद् भागवत पुराण में ही लिखा है कि महिलाओं को व्यासपीठ में नहीं बैठना चाहिए। कई जगह ऐसा उल्लेख मिलता है, लेकिन आज के परिवेश में लोग जहां लाभ व सम्मान मिलता है, वहां शास्त्र की अनदेखी कर देते है। व्यास पीठ पर महिलाओं को वर्जित किया गया है। महिलाएं सत्संग करें पर व्यास पीठ पर ना बैठे। जब व्यास पीठ पर बैठने तक की मनाही है तो जगदगुरू कैसे बन सकतीं है।