Reality of MY Samikaran : यादव बने रहे चारा, मुस्लिम “भाई” बन लेते रहे मजे

आइए जानते हैं Muslim Yadav समीकरण क्या है और क्या है इसकी वास्तविकता (Reality of MY Samikaran)

पिछड़ों के कल्याण के संकल्प के साथ बनी मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल आदि पार्टियां हों या कांग्रेस और उससे टूट कर बनी त्रणमूल कांग्रेस (TMC) जैसे दल, इन सभी का मुस्लिम प्रेम जगजाहिर है। यह सभी दल Muslim Yadav (MY Equation) को आधार बना कर चुनाव में जीत दर्ज करती रही हैं। इस Muslim Yadav समीकरण की वास्तविकता (Reality of MY Samikaran) यह है कि इसमें यादवों का कुछ खास भला नहीं हुआ।

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आंकड़ों की माने तो  MY समीकरण  के सहारे चलने वाली समाजवादी पार्टी, राजद आदि में यादव सिर्फ चारा बने रहे जबकि एकमुश्त वोट की गारंटी बनने वाले मुस्लिम भाई मजे लेते रहे। इन सरकारों के कामकाज की समीक्षा करने पर तो यही परिणाम निकलता है। यह सभी Muslim Reservation की दीवानी रही हैं। जरा देश के हालात पर एक नजर डालिए।

 

क्या है MY samikaran, मुस्लिम यादव समीकरण क्या है

बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ओबीसी में यादव जाति की संख्या अच्छी खासी है। इसी तरह इन राज्यों में मुस्लिमों की संख्या भी काफी ज्यादा है। यह दोनो वर्ग मिलकर राज्य की तीस से 40 प्रतिशत आबादी बनते रहे हैं। मंडल कमीशन के जमाने में उभरे लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव आदि नेताओं ने यादव व मुस्लिम का गठजोड़ कर अपने लिए एक वोट बैंक बनाया था। इस वोट बैंक के सहारे वह लंबे समय तक सत्ता में रहे। क्यों कि उन्हें सिर्फ इन दो वर्गों के वोट से जीत मिल जाती थी, इसलिए वह समाज के अन्य वर्गों की कुछ खास परवाह नहीं करते थे। इसी गठजोड़ को MY samikaran, मुस्लिम यादव समीकरण कहते हैं। ओबीसी की अन्य जातियों में चेतना का उभार होने के बाद यह समीकरण चुनाव में परास्त हुआ।

Reality of MY Samikaran : बंगाल, कर्नाटक में 100 % तो बिहार, उप्र के 70 % Muslims in OBC Quota

हालात यह हैं कि ओबीसी आरक्षण में भी एक बड़ा कोटा हिन्दू पिछड़ों से छीन कर मुस्लिमों को दिया जा चुका है। समाजवादी पार्टी की खास सहयोगी टीएमसी ने तो बंगाल में पिछड़ा वर्ग की कुल 179 जातियों की सूची में 118 जातियां मुस्लिमों की शामिल कर रखी है। यानि 90 प्रतिशत मुस्मिल ओबीसी में शामिल है। इसी तरह कर्नाटक में तो सभी मुस्लिम 2013 से ही पिछड़े वर्ग में शामिल कर लिए गए थे। उत्तर प्रदेश  में समाजवादी पार्टी की सरकार ने कुछ अलग नहीं किया था।  यहां भी कुल 79 ओबीसी जातियों में से 21 मुस्लिम जातियों को शामिल किया गया है। आबादी के लिहाज से मुस्लिमों का 70 प्रतिशत वर्ग इसमें शामिल है। यही हाल बिहार का भी है। इन आंकड़ों से यह समझा जा सकता है कि Reality of MY Samikaran यह है कि सनातनी ओबीसी के हकों पर मुस्लिमों की डकैती कराई गई है। 

आंध्र प्रदेश में पांच प्रतिशत Muslim Reservation

देश में वोट बैंक के खातिर कांग्रेस लगातार मुसलमानों को अलग से आरक्षण देने की कोशिश करती रही है। धर्म के आधार पर आरक्षण देने की कोशिश कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश से शुरू की थी। 2004 में केन्द्र व आंध्र प्रदेश में सत्ता में आने के साथ ही कांग्रेस ने मुसलमानों को आरक्षण देने का अध्यादेश जारी कर दिया था। इस पर उच्च न्यायालय की रोक लगने के बाद 2005 में पांच प्रतिशत आरक्षण देने का कानून पास कर दिया। तमाम कानूनी अड़चनों से होते हुए यह मामला अभी सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय आंध्र प्रदेश के रोक पर स्थगन आदेश देने के कारण अभी तक आंध्र प्रदेश में सभी मुसलमानों को पांच प्रतिशत आरक्षण धर्म के आधार पर दिया जा रहा है।

सभी गैरभाजपाई दलों में Muslim Reservation की मची रही होड़

उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय से लगातार उसके अध्यादेश रद होने के बाद कांग्रेस ने ओबीसी कोटे की ओर नजर घुमाई और तेजी के साथ मुसलमानों को इस कोटे में शामिल कर दिया। हालात यह है कि कर्नाटक में आंध्र प्रदेश की तरह सभी मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण दिया गया। भाजपा की सरकार ने बाद में इसे निरस्त कर दिया तो कांग्रेस ने अपनी सरकार आने पर सभी मुसलमानों को ओबीसी कोटे में शामिल कर दिया। त्रणमूल कांग्रेस ने भी पश्चिम बंगाल के 90 प्रतिशत से अधिक मुसलमानों को ओबीसी कोटे में शामिल कर आरक्षण का लाभ दे दिया। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में भी 38 मुस्लिम जातियों को ओबीसी कोटे में जोड़ा। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने 21 मुस्लिम जातियों जो की राज्य की कुल मुस्लिम आबादी का 70 प्रतिशत थी, उन्हें ओबीसी कोटे में शामिल कर दिया था। केरल में ओबीसी कोटे में आठ प्रतिशत हिस्सा मुसलमानों को दिया गया है।

मुस्लिमों को आरक्षण देने के लिए दीवानी रही कांग्रेस समेत इंडी गठबंधन की पार्टियां
कोई कुछ भी कहे पर यह तो मानना ही पड़ेगा कि एक संगठित वोट बैंक के रूप में मुसलमान आजादी के बाद से लगातार हावी रहे हैं। वह अपने अकेले दम पर किसी को  जिता पाएं या न जिता पाएं पर वह एक ऐसा मजबूत आधार दे देते हैं कि हिन्दुओं में से थोड़े से भी लोगो को जाति के नाम पर बांट कर यदि साध लिया जाए तो राजनीतिक दलों का काम बन जाता रहा है। यही वजह रही है कि कांग्रेस समेत गैर भाजपाई दल लगातार मुसलमानों के दीवाने रहे हैं।

मुस्लिमों में जाति व्यवस्था से किया जाता रहा इंकार फिर भी ओबीसी दर्जा स्वीकार्य

हिन्दू जहां शताब्दियों से जातियों में बंटा रहा वहीं मुस्लिम एक वर्ग के रूप में संगठित रहे।मुस्लिम समाज व धर्म गुरु सभी मुसलमानों को एक बराबर बताते रहे हैं। उनके यहां सामाजिक पिछड़ा जैसी कोई बात स्वीकार्य नहीं रही है। शैक्षिक रूप से भी उन्हें पिछड़ा नहीं माना जाता रहा। इसकी वजह यह रही कि सभी के लिए मदरसो के माध्यम से इस्लामिक शिक्षा अनिवार्य रही है। केरल व उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में तो इस्लामिक शिक्षा को औपचारिक शिक्षा के समकक्ष ही माना गया है। राज्य सरकारों ने बकायदा इसे मान्यता दी है। इसके बावजूद मंडल कमीशन ने इस्लामिक मान्यताओं को धता बताते हुए बड़ी संख्या में मुस्लिम जातियों को समाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना। मजे की बात यह रही कि जातिगत व्यवस्था से इंकार करने वाले मुस्लिमों  ने भी बड़े आराम से मंडल कमीशन की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। कहीं कोई विरोध नहीं हुआ। किसी ने नहीं कहा कि मुस्लिम समानता का धर्म है आदि।
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Reality of MY Samikaran : मुस्लिम गठजोड़ में मारा गया सनातनी ओबीसी का हक

ओबीसी को 27 प्रतिशत कोटा मिला तो उसे सामाजिक क्रांति के रूप में परिभाषित किया गया पर यह क्रांति वोट बैंक की राजनीति में पहले दशक में ही दरकिनार हो गई। ओबीसी के तहत हिन्दू जातियों को शामिल कर लाभ देने की कवायद काफी कम की गई। जिन जातियों को ओबीसी में शामिल किया गया, उनका उद्धार होने से पहले ही जाति व्यवस्था से इंकार करने वाले मुस्लिम समाज को शामिल कर लिया गया। इसके चलते हिन्दू ओबीसी को मिलने वाले कोटे में से एक बड़ा हिस्सा मुसलमानों को चला गया। यह सब उन्हीं दलो ने किया जो खुद को ओबीसी का हितैषी बता कर लंबे समय तक उनके वोट बटोरती रहीं।

यक्ष सवालः आखिर वह ओबीसी कौन हैं जो सपा, कांग्रेस, टीएमसी आदि के साथ खड़े है 

ऐसे में यक्ष सवाल यही है कि आखिर वह सनातनी ओबीसी कौन है जो इतने भी जागरूक नहीं है कि अपना हित समझ सकें और दशकों से सपा, कांग्रेस जैसी पार्टियों के साथ जुड़े रहे हैं। यादवों की पार्टी कही जाने वाली समाजवादी पार्टी या राजद ने अपने परिवार व रिश्तेदारों को छो़ड़कर आम यादवों के उद्धार के लिए कोई आयोग बनाया हो, कोई शैक्षिक सामाजिक संस्था बना दी हो, उनके शिक्षण-प्रशिक्षण, मुफ्त कोचिंग की व्यवस्था कर दी हो, रोजगार उपलब्ध करा दिया हो, ऐसा तो ज्ञात नहीं है पर मुसलमानों के लिए इन सबने यह किया है, यह सभी को पता है।  इसके बावजूद इन वर्गो के बड़ी संख्या में लोग लंबे समय तक इन दलों से जुड़े रहे।
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