Samvat 2024 : संवत्सरों के नाम, क्या है वर्तमान संवत्सर का नाम

चन्द्र वर्ष को क्यों दी गई सनातन में प्रमुखता

Samvat 2024 : संवत्सर का नाम

वर्ष को संवत्सर कहा जाता है। जैसे प्रत्येक माह के नाम होते हैं, उसी तरह प्रत्येक वर्ष के नाम अलग अलग होते हैं। जैसे बारह माह होते हैं, उसी तरह 60 संवत्सर होते हैं। संवत्सर अर्थात बारह महीने का कालविशेष। संवत्सर उसे कहते हैं, जिसमें सभी महीने पूर्णतः निवास करते हों।

दो तरह के होते हैं सवंत्सर

भारतीय संवत्सर मुख्यतः दो हैं- चान्द्र तथा सौर। सौर वर्ष पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा पर आधारित होती है। इसमें 365 दिन होते हैं। चन्द्र वर्ष चन्द्रमा की पृथ्वी के परिक्रमा पर आधारित होती है। यह 354 दिन का होता है। चन्द्र मास आम तौर पर तीस दिन होते हैं। चन्द्र की कलाओं के अनुसार यह संख्या कम या ज्यादा हो सकती है। इस तरह 12 मास का एक संवत्सर या वर्ष बनता है। चन्द्र वर्ष व सौर वर्ष में जो दिनों की संख्या में अंतर है वह हर तीन साल बाद अधिक मास जुड़ने से समायोजित हो जाता है।

भारत में चन्द्र वर्ष को क्याें मिली प्रमुखता

भारत में प्राचीन काल से ही जब ग्रहों की संख्या, दूरी, तारों की दूरी, सूर्य की गति व दूरी आदि गूढ़ जानकारियां उपलब्ध रही हैं। यहां तक कि सौर कुंडली व चन्द्र कुंडली प्रचलित रही हैं जिसमें सूर्य आदि ग्रहों की गणना को ही आधार बनाया जाता है। इसके बावजूद भारत ने चन्द्र वर्ष को प्रमुखता दी। इसकी मुख्य वजह प्रकृति के साथ भारत के आदिकाल से जुड़ाव का होना रहा है। सनातन संस्कृति पूरी तरह प्रकृति प्रेमी संस्कृति रही है। यहां धर्म का मतलब ही प्रकृति के अनुरूप जीवन पद्धति अपना रहा है। ऐसी स्थिति में जब काल गणना की बारी आई तो सनातनियों ने चन्द्र वर्ष को अपने दैनंदिनी जीवन का अंग बनाया। पृथ्वी पर होने वाली बहुसंख्यक प्राकृतिक घटनाएं चन्द्र पर आधारित होती है। यहां तक कि पृथ्वी पर मौसम का परिवर्तन भी चन्द्र पर आधारित ही होता है।  इसी वजह से चन्द्र वर्ष को प्रमुखता दी गई। जैसे फागुन में बसंत का आना, ज्येष्ठ मास में भीषण गर्मी व सावन में बारिश। सौर वर्ष के मास बदलते रहेंगे पर मौसम चन्द्र वर्ष के हिसाब से ही चलता रहता है।

प्रथमा से पूर्णिमा तक का मास

चन्द्र वर्ष का एक माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक या कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से पूर्णिमा तक माना जाता है। इसमें प्रथम माह को अमांत और द्वितीय माह को पूर्णिमान्त कहते हैं। दक्षिण भारत में अमांत और पूर्णिमांत माह का ही प्रचलन है। धर्म- कर्म, तीज-त्योहार और लोक-व्यवहार में इस संवत्सर की ही मान्यता अधिक है।

संवत्सरों के नाम और उनका क्रम

हर चन्द्र वर्ष का एक नाम होता है। इसी तरह हर चन्द्र वर्ष का एक राजा, मंत्री आदि भी होते हैं जिनका प्रभाव उस वर्ष पर पड़ता है। कुल साठ संवत्सर का क्रम चलता है। वर्तमान में कालयुक्त नाम का संवत्सर जो इस क्रम में 52वें स्थान पर आता है, वह चल रहा है। यानि ेोसनोू 2081 का नाम कालयुक्त है।

60 संवत्सरों के नाम तथा क्रम इस प्रकार हैं-

(1) प्रभव,

(2) विभव,

(3) शुक्ल,

(4) प्रमोद.

(5) प्रजापति,

(6) अंगिरा,

(7) श्रीमुख,

(8) ‘भाव,

(9) युवा,

(10) थाता.

(11) ईश्वर,

(12) बहुधान्य,

(13) प्रमाथी,

(14) विक्रम,

(15) विषु,

(16) चित्रभानु,

(17) स्वभानु,

(18) तारण,

(19) पार्थिव,

(20) व्यय,

(21) सर्वजित्,

(22) सर्वधारी,

(23) विरोधी,

(24) विकृति,

(25) खर,

(26) नंदन,

(27) विजय,

(28) जय,

(29) मन्मथ,

(30) दुर्मुख,

(31) हेमलम्ब,

(32) विलम्ब,

(33) विकारी,

(34) शर्वरी,

(35) प्लव,

(36) शुभकृत्,

(37) शोभन,

(38) क्रोधी,

(39) विश्वावसु,

(40) पराभव,

(41) प्लवंग,

(42) कीलक,

(43) सौम्य,

(44) साधारण,

(45) विरोधकृत्,

(46) परिधावी,

(47) प्रमादी,

(46) परिधावी,

अनिरुद्ध जोशी ‘शतायु’

(47) प्रमादी,

(48) आनन्द,

(49) राक्षस,

(50) नल,

(51) पिंगल,

(52) काल,

(53) सिद्धार्थ,

(54) रोद्रि,

(55) दुर्मति,

(56) दुंदुभि,

(57) रुधिरोद्द्वारी,

(58) रक्ताक्ष,

(59) क्रोधन तथा

(60) अक्षय।

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