सोशल मीडिया पर Eid al-Adha में बकरा काटने के खिलाफ कबीर पंथियों ने मुहिम चला रखी है। इसमें कबीर पंथी मुसलमानों पर कुरान की गलत व्याख्या करने का आरोप लगाते हुए बकरा काटने का विरोध कर रहे।

अब तक होली दिवाली जैसे त्योहारों पर ही पानी खराब न करने, पटाखे न जलाने, दीपक न जलाने जैसे पोस्ट ही पढ़ने को मिलती थी। अब सोशल मीडिया पर Eid al-Adha पर बकरा काटने के खिलाफ पोस्ट की बाढ़ आई हुई है।

Stop Killing Animals के टैग के साथ सोशल मीडिया पर जबर्दस्त मुहिम छेड़ी गई है। कबीर पंथी संत इसमें सबसे आगे हैं। संत रामपाल तो बकायदा मुसलमानों को ही कुरान फिर से पढ़ने व समझने की चुनौती दे रहे हैं।

संत रामपाल ने कुरान पर एक पुस्तक भी लिखी है, जिस वह मुफ्त में वितरित कर रहे हैं। PETA (People for the Ethical Treatment of Animals) भी इस मुहिम में जुड़ गया।

Eid al-Adha इस बार 17 जून 2024 को है। इससे पूर्व सोशल मीडिया यूजर्स कबीर के दोहे लिखकर बकरा काटने का विरोध कर रहे। बकरीद पर मुसलमान कलमा पढ़कर बकरे को काटते हैं। मानते हैं कि उन्हें जन्नत मिलेगी।

सोशल मीडिया यूजर्स का कहना था कि अगर मांस खाने से जन्नत मिलता तो सबसे पहले मांसाहारी जानवरों को मिलता। कबीर पंथी कह रहे कि मांस खाकर आप परमात्मा के बनाए विधान को तोड़कर दोषी बन रहे हो।

Eid al-Adha पर बकरा काटने का विरोध करने वालों ने कबीर के दोहे खूब चलाए।

झोटे बकरे मुरगे ताई। लेखा सब ही लेत गुसाईं।। मग मोर मारे महमंता। अचरा चर हैं जीव अनंता।।

दोनूं दीन दया करौ, मान बचन हमार गरीबदास गऊ सूर में, एकै बोलन हार।। (दोनो ही धर्म के लोग हमारा बचन मान कर दया करें। गाय और बकरे में एक ही परमात्मा का वास है।)

कबीर-माँस अहारी मानई, प्रत्यक्ष राक्षस जानि। ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।। (मांसाहार करने वाले को प्रत्यक्ष राक्षस जानना चाहिए। उसकी संगति नहीं करनी चाहिए अन्यथा भक्ति में नुकसान होता है।)

जो गल काटै और का, अपना रहै कटाय। साईं के दरबार में बदला कहीं न जाय॥ (जो व्यक्ति किसी जीव का गला काटता है उसे आगे चलकर अपना गला कटवाना पड़ेगा। परमात्मा के दरबार में करनी का फल अवश्य मिलता है।)

कबीर, मांस मछलिया खात हैं, सुरापान से हेत। ते नर नरकै जाहिंगे, माता पिता समेत। (कबीर जी कहते हैं जो मनुष्य मांस, मछली खाते हैं वह नरक में माता पिता के साथ जाते हैं। मांस खाना महापाप है।)

जीव हनै हिंसा करे, प्रकट पाप सिर होय। निगम पुनि ऐसे पाप ते, भिस्त गया ना कोय। (जीव हिंसा करने से पाप ही लगता है। ऐसा महापाप करके स्वर्ग कोई नहीं गया। तो फिर हे भोले मानव फिर ऐसा महापाप क्यों करते हो।)