Mahakumbh2025 ः देश के आधे हिन्दुओं ने दर्ज कराई उपस्थिति, यह है प्रयागराज की महिमा

Mahakumbh2025 में तीस दिन में 50 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने लगाई मां गंगा, मां यमुना व त्रिवेणी में डुबकी। जिस स्थान पर डुबकी लगाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए भारत का लगभग आधा हिन्दू समाज उमड़ पड़ा, वह स्थान है तीर्थराज प्रयाग। दुनिया में ऐसी कोई भी जगह नहीं है जहां किसी विशेष समय काल में एक साथ इतनी बड़ी आबादी पहुंच कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हो। यह तीर्थराज प्रयाग की ही महिमा है कि दुनिया यहां दौड़ी चली आ रही है। वास्तविकता यह है कि मां गंगा के 2525 किमी लंबे तटों में से किसी भी तट पर कभी इतनी आबादी नहीं जुटती। मां गंगा व मां यमुना के साथ अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थल त्रिवेणी के तट पर बसे प्रयागराज में आकर त्रिवणी में एक डुबकी लगाने भर से श्रद्धालुओं की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाते हैंं। कम से कम सनातन के शास्त्र तो यही बताते हैं।

प्रयागराज की महिमा का बखान करते नहीं थकते तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास खुद तो अपना जीवन काशी में बिताए पर प्रयागराज की महिमा करते नहीं थकते। अयोध्याकांड में लिखते हैं-
संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा॥
चवँर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा॥4॥
भावार्थ:-((गंगा, यमुना और सरस्वती का) संगम ही तीर्थराज प्रयाग का अत्यन्त सुशोभित सिंहासन है। अक्षयवट छत्र है, जो मुनियों के भी मन को मोहित कर लेता है। यमुनाजी और गंगाजी की तरंगें उसके (श्याम और श्वेत) चँवर हैं, जिनको देखकर ही दुःख और दरिद्रता नष्ट हो जाती है॥4॥
इसके आगे वह प्रयागराज का वर्णन करते हैं –
छेत्रु अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा। सपनेहुँ नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा॥
सेन सकल तीरथ बर बीरा। कलुष अनीक दलन रनधीरा॥3॥
भावार्थ:-प्रयाग क्षेत्र ही दुर्गम, मजबूत और सुंदर गढ़ (किला) है, जिसको स्वप्न में भी (पाप रूपी) शत्रु नहीं पा सके हैं। संपूर्ण तीर्थ ही उसके श्रेष्ठ वीर सैनिक हैं, जो पाप की सेना को कुचल डालने वाले और बड़े रणधीर हैं॥3॥
दोहा :
सेवहिं सुकृती साधु सुचि पावहिं सब मनकाम।
बंदी बेद पुरान गन कहहिं बिमल गुन ग्राम॥105॥
भावार्थ:-पुण्यात्मा, पवित्र साधु उसकी सेवा करते हैं और सब मनोरथ पाते हैं। वेद और पुराणों के समूह भाट हैं, जो उसके निर्मल गुणगणों का बखान करते हैं॥105॥
इतने से भी तुलसीदास का मन नहीं भरा तो वह लिखते हैं –

को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ॥
अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा॥1॥

पापों के समूह रूपी हाथी के मारने के लिए सिंह रूप प्रयागराज का प्रभाव (महत्व-माहात्म्य) कौन कह सकता है। ऐसे सुहावने तीर्थराज का दर्शन कर सुख के समुद्र रघुकुल श्रेष्ठ श्री रामजी ने भी सुख पाया॥1॥
यानि तीर्थराज प्रयाग सभी प्रकार के पापों को नष्ट कर देता है। पाप नष्ट करने की तीर्थराज प्रयाग की असीमित क्षमता प्रभु श्री राम को भी सुख देती है।

पौष पूर्णिमा स्नान के साथ शुरू हुआ महाकुंभ
प्रयागराज धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की सभी कामना करते हैं पूरी

तीर्थराज प्रयाग में आने वाले अधिकांश श्रद्धालु सिर्फ एक ही मनोकामना रखते हैं और वह है सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करना। हालांंकि तीर्थराज प्रयाग सिर्फ मोक्ष ही नहीं देते वरन सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। महाकुंभ 2025 के प्रारंभ में मां गंगा के पूजन के लिए आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 13 दिसंबर 2024 को तुलसीदास जी के शब्दों को उदृधत करते हुए प्रयागराज की महिमा का कुछ इन शब्दों में वर्णन किया-
सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी। माधव सरिस मीतु हितकारी॥
चारि पदारथ भरा भँडारू। पुन्य प्रदेस देस अति चारू॥2॥
भावार्थ:-तीर्थों के राजा का मंत्री सत्य है, श्रद्धा प्यारी स्त्री है और श्री वेणीमाधवजी सरीखे हितकारी मित्र हैं। चार पदार्थों (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) से भंडार भरा है और वह पुण्यमय प्रांत ही उस राजा का सुंदर देश है॥2॥
यानि प्रयागराज धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारो तरह की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
mahakumbh2025 : gloriuos pandals of saints at teerthraj prayag

त्यागी तपस्वी संत प्रयागराज में करते हैं वैभव का प्रदर्शन 

महाकुंभ 2025 ः माघ मास में सभी देवी देवता प्रयागराज में त्रिवेणी तट पर निवास करते हैं। इस तरह तीर्थों के राजा प्रयागराज में हर तरह का वैभव बिखरा पड़ा रहता है। अयोध्या के  महंत मानस मंजुल के अनुसार तीर्थराज प्रयाग संतों के माध्यम से अपने वैभव को प्रकट करते हैं। मानस मंजुल के अनुसार गंगा व यमुना की रेती पर संत जो बड़ी बड़ी अट्टालिकाएं, किला व महलनुमा शिविर सजाते हैं, वह सब प्रयागराज की महिमा है। 

नान्हे से भजन किया
जग से रहा उदास
तीरथपति आसा करिहिं
कब अइहैं हरिदास
महंत मानस मुकुल के तीर्थराज प्रयाग भी माघ मास में संतों के आने का इंतजार करते हैं। इन संतों के माध्यम से ही तीर्थराज प्रयाग अपने वैभव को प्रकट करते हैं। मानस मुकुल के अनुसार अब प्रधानमंत्री कहीं जाएंगे तो उनकी व्यवस्था होगी। इसमें खर्च होगा। यही तीर्थराज में भी होता है। यहां तीर्थराज के दरबार में उपस्थित होने वाले संत बड़े बड़े पंडाल बनाते हैं। बड़े बड़े भंडारे चलाते हैं। बड़े पैमाने पर दान करते हैं।

महाकुम्भ 2025 अध्यात्म, ज्ञान और साधना की त्रिवेणी-ब्रह्मचारी गिरीश जी

वेद विद्या मार्तण्ड ब्रम्हचारी गिरीश जी ने तीर्थराज प्रयाग में आयोजित महाकुंभ 2025 को भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं में आस्था तथा देवी देवताओं के प्रति भक्ति का सबसे बड़ा उत्सव निरूपित किया है। प्रयाग राज में महाकुंभ का आयोजन भारत की सनातन वैदिक परंपराओं के प्रति असंख्य तीर्थ यात्रियों की सामूहिक आस्था के व्यक्तीकरण का एक पवित्र अवसर है। शास्त्रों के अनुसार महाकुम्भ अपनी बुराइयां छोड़कर एवं अच्छाइयां लेकर जाने का शुभ अवसर है।

महाकुंभ 2025 में तीस दिन में 50 करोड़ श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी

महाकुंभ 2025 में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। सरकारी आंकड़ो की माने तो तीस दिन में 50 करोड़ श्रद्धालु तीर्थराज प्रयाग में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। श्रद्धालुओं की यह सुनामी बता रही है कि प्रयाग को तीर्थराज क्यों कहा जाता है। इतना बड़ा दरबार और इतनी ज्यादा जनता। प्रयागराज के आंगन में समाने को जैसे पूरी दुनिया उमड़ी चली आ रही है। दूसरी ओर तीर्थराज प्रयाग भी अपने आंगन को जैसे बड़ा करते चले जा रहे हों। माघ मास बीत चुका है और धार्मिक परंपराओं के अनुसार महाकुंभ भी समाप्त हो गया है। इसके बावजूद आने वालों का तांता कम होने का नाम नहीं ले रहा।

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