Mahakumbh 2025 के Mauni Amavasya पर संगम क्षेत्र में एक बार नहीं कई कई बार stampede (mahakumbhstampede) या भगदड़ मची थी। मौत संगम तट पर मंगलवार रात को अपना तांडव मचाने को आतुर थी और पुलिसिया व्यवस्था ने उसे अपनी मनमानी करने का पूरा मौका दे दिया। भीड़ घटने के बाद बुधवार शाम को संगम तट पर पहुंचे संवाददाता को वहां के हालात चीख चीख कर बता रहे थे कि देर रात से सुबह तक यहां क्या कुछ घटित हुआ। गंगा के तट से लेकर 500 मीटर दूर तक कपड़ों के ढेर, बैग, सूटकेस, बोरियां, इनकी ढेरियां लगी हुई थी। हजारों की संख्या में जूते चप्पल पड़े हुए थे। यह सब यह बता रहे थे कि मंगलवार रात से बुधवार सुबह तक संगम तट पर पहुंचे श्रद्धालुओं के साथ क्या हुआ था। आइए जानते हैं कि Mahakumbh 2025 के Mauni Amavasya पर संगम क्षेत्र में हुई stampede (mahakumbhstampede) या भगदड़ में पुलिस से कहां कहां चूक हुई और क्या घटना को रोका जा सकता था।
1. संगम तट पर सरकुलेटिंग एरिया बनाए रखने में असमर्थ रही पुलिस
उत्तर प्रदेश पुलिस की भीड़ नियंत्रण की क्षमता हमेशा से सवालों के घेरे में रही है। मौनी अमावस्या Mauni Amavasya पर मची भगदड़ में 30 श्रद्धालुओं की मौत व 90 से अधिक घायल ने इस बात को सही साबित कर दिया। मंगलवार को संगम तट पर अत्यधिक भीड़ थी। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो पुलिस ने संगम से झूंसी की ओर जाने वाले मार्गों को बंद कर रखा था। इसके चलते स्नानार्थी एक सीमित क्षेत्र में फंस गए थे। आगे नदी थी, उधर जा नहीं सकते थे। पीछे से आ रहे श्रद्धालुओं का भारी दबाव था। काली सड़क से आ रहा श्रद्धालुओं का रेला इतना विशाल था कि संगम मार्ग की सारी चौड़ाई संकरी गली सरीखी नजर आने लगी थी। इस रेले ने कई बार बैरीकेटिंग तोड़ा। दूसरी ओर संगम से स्नान करके निकलने वाले लोगों को बाहर जाने का रास्ता भी नहीं मिल रहा था। दोनो ओर के दबाव में मची भगदड़ (mahakumbhstampede) ने अंततः तीस लोगों की जान ले ली। पुलिस ने अगर संगम तट पर सरकुलेटिंग एरिया बचाए रखा होता तो यह नौबत न आती। स्नान करके बाहर निकलने की कोशिश करने वालों जगह मिल जाती।
2. Mahakumbh 2025 ः गंगा के तट तक बिठा दिए श्रद्धालु
महाकुंभ ही नहीं, सामान्य माघ मेले में भी पुलिस घाटों पर तैनात रहती है। यह श्रद्धालुओं व दुकानदारों को तट से कम से कम सौ मीटर दूर रख कर स्नानार्थियों को स्नान करने के लिए आने जाने की सुविधा देने के लिए किया जाता रहा है। महाकुंभ के मौनी अमावस्या जैसे बड़े पर्व पर भी घाटों से पुलिस नदारद रही। स्नानार्थी सीधे गंगा के तट तक पहुंच गए और अपना सरसामान रख कर वहीं बैठ गए। इसके चलते स्नान करने जाने व स्नान करके लौटने में अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी। यही वजह रही कि गंगा तट पर संगम क्षेत्र में कई बार श्रद्धालुओं का रेला दोनो तरफ से आता रहा। गंगा के किनारे बड़ी संख्या में पड़े बैग और अन्य सामान यहां मचे भगदड़ (mahakumbhstampede) की गवाही दे रहे है। यहां हुी धक्का मुक्की और भगदड़ में लोगों को अपना सर सामान छोड़ कर जान बचा कर घाट से निकलना पड़ा। आइए जानते हैं कि योगी जी की प्रिय पुलिस से आखिर कहां कहां चूक हुई।
3. संगम क्षेत्र भीड़ से पटने के बावजूद स्नानार्थियों को नहीं किया गया डायवर्ट
महाकुंभ मेला 2025 की शुरुआत से ही यह बताया जाता रहा कि मेला क्षेत्र में 2700 कैमरे भीड़ नियंत्रण के लिए लगाए गए है। इसके साथ ही चालीस हजार सुरक्षा कर्मी भी तैनात किए गए हैं। यह सारी तैयारियां मंगलवार को ही धरी की धरी रह गई। 2700 कैमरे न तो यह दिखा पाए कि संगम नोज पर कितनी भीड़ है और न ही यह दिखा पाए कि संगम की ओर आने वाले मार्गों पर कितनी भीड़ है। या फिर पुलिस प्रशासन के अधिकारियों ने यह सब देखना पसंद नहीं किया। हालात यह रहे कि संगम नोज का क्षेत्र खचाखच भरा होने के बावजूद पुलिस ने परेड होकर संगम की ओर आने वाले श्रद्धालुओं को रोकने की कोई कोशिश नहीं की। दारागंज व झूंसी से आने वाले श्रद्धालुओं को तो रोका गया पर कीडगंज, अलोपीबाग होकर परेड के रास्ते आने वाले श्रद्धालुओं को नहीं रोका गया। इसके चलते संगम पर लगातार दबाव बना रहा। पुलिस ने अगर परेड के मार्ग को बंद कर दिया होता और वहां एकत्र श्रद्धालुओं को दशाश्वमेध व अन्य घाटों की ओर मोड़ दिया होता तो यह नौबत न आती। काली सड़क व संगम मार्ग पर भीड़ में फंसे श्रद्धालु बाहर निकलने और घाटों तक पहुंचने के लिए लगातार धक्का मुक्की करते रहे।
4. पुलिस के सारे एकल मार्ग संगम तक पहुंचे
डीआइजी वैभव कृष्ण ने बुधवार को भी मीडिया से बातचीत में दावा किया कि पुलिस ने महाकुंभ नगर में एकल मार्गीय व्यवस्था लागू कर रखी है। भीड़ नियंत्रण के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी एकल मार्गीय व्यवस्था के तहत पुलिस ने पांटून पुलों को बंद कर रखा है जिससे कि परेड व दारागंज की ओर के श्रद्धालु झूंसी की ओर न जाएं। झूंसी के श्रद्धालु अरैल न जाएं। पुलिस की यह सोची समझी एकल मार्गीय व्यवस्था आधे अधूरे मन से लागू की गई। झूंसी व अरैल की ओर तब भी गनीमत थी। तेलियरगंज से लेकर अलोपीबाग व कीडगंज तक के हालात यह रहे कि किसी भी ओर से आने वाले श्रद्धालु को सीधे संगम मार्ग तक पहुंचा दिया जा रहा था। कीडगंज व अलोपीबाग बैरहना होकर आने वाले श्रद्धालु परेड व काली सड़क होकर संगम की ओर जा रहे थे। दूसरी ओर तेलियरगंज व फाफामऊ होकर आने वाले श्रद्धालु नागवासुकी होकर दारागंज पहुंच रहे थे। इस तरह संगम जाने के लिए हर तरफ से दबाव था। अगर एकल मार्गीय व्यवस्था ठीक से लागू होती तो रिवर बैंक रोड, बख्शी बांध आदि के रास्ते आने वाले श्रद्धालु दारागंज न पहुंचते। डायवर्सन लागू किया होता तो कीडगंज, नया पुल बैरहना आदि के श्रद्धालुओं को सरस्वती घाट, बोट क्लब आदि में स्नान कराया जा सकता था।
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5. झूंसी छोर पर ज्यादा जगह उपलब्ध होने का भी लाभ नहीं उठा पाई पुलिस
आम तौर पर संगम क्षेत्र में दबाव बढ़ने पर श्रद्धालुओं को झूंसी की ओर मोड़ दिया जाता रहा है। पुलिस ने मौनी अमावस्या (mauni amavasya) पर ऐसा नहीं किया। झूंसी की ओर गंगा के तटों पर स्थान ज्यादा उपलब्ध होने के चलते स्नान में आसानी हो जाती है। पुलिस इस बार लगातार पांटून पुलों को बंद करके रखी हुई थी। संगम का क्षेत्र पूरी तरह पट जाने के बाद जब श्रद्धालुओं के निकलने की कोई जगह नहीं मिली तो धक्कामुक्की होना स्वाभाविक था. बेहतर यह रहा होता कि स्थान भरते ही श्रद्धालुओं को दूसरे घाटो की ओर मोड़ दिया जाता।