Politics Of Unemployment : क्या विपक्ष सभी बेरोजगारों को सरकारी नौकरी दे पाएगा

 Politics of unemployment : can opposition give job to all unemployed. Report exposing oppisition parties on unemployment बेरोजगारी पर हो रही राजनीति में विपक्ष की पोल खोलती रिपोर्ट

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क्या सभी बेरोजगारों को नौकरी दे लेगा विपक्ष  

Can Opposition Give Jobs to All Unemployed…फिलहाल आंकड़े तो इसकी गवाही नहीं देते। This is politics of unemployment. आंकड़ो की माने तो विपक्षी दल युवाओं को रोजगार के नाम पर सिर्फ भ्रमित कर रहे। बेरोजगारी का अभिशाप दूर नहीं कर पाएंगे। फिलहाल, विपक्ष में जो भी दल हैं, जिसमें कांग्रेस, समाजवादी पार्टी आदि शामिल है, की पुरानी घोषणाओं पर हुए कार्यों के अनुभव को देखें तो यह लगता है कि चुनाव जीतने के लिए यह विपक्षी दल बेरोजगार युवाओं को सिर्फ झुनझुना पकड़ा रहे हैं। यह है Politics of unemployment.

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लोकसभा चुनाव 2024 में बेरोजगारी को बनाया प्रमुख मुद्दा- Unemployment is an important issue in General Election 2024

लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान विपक्ष  जिन गिने चुने मुद्दों को उठा रहा है, उसमें नौकरी या रोजगार एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन कर सामने आया है। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक विपक्ष खास कर इंडी गठबंधन के दल बेरोजगारी बढ़ने का मुद्दा उठा रहा है। सरकारी आंकड़े वैसे बेरोजगारी दर में रिकार्ड कमी आने की बात कहते है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में युवा ऐसे हैं जो बेरोजगारी बढ़ने के विपक्ष के दावे से सहमत नजर आते हैं। ऐसे युवाओं को कुछ तथ्यों के साथ आज  सत्य की जानकारी देने का प्रयास करते हैं।

बेरोजगारी दूर करने को विपक्ष ने क्या किए उपाय

बेरोजगारी दूर करने का दावा विपक्ष में शामिल लगभग सभी दल जोरशोर से कर रहे हैं। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में तीस लाख लोगों को रोजगार देने का व ादा किया है। समाजवादी पार्टी ने भी सत्ता में आने पर बेरोजगारी दूर करने का वादा किया है। सपा ने इससे पहले 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में एक करोड़ नौकरी देने का वादा किया था। इसी तरह अन्य दलों ने भी तमाम वादे किए हैं। पुराने अनुभवों को देंखे तो विपक्षी दलों के यह वादे सिर्फ चुनावी झुनझुना ही साबित होते रहे हैं। सबसे पहले कांग्रेस की बात की जाए।

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Politics Of Unemployment : किसी भी राज्य में बेरोजगारी दूर नहीं कर पाई कांग्रेस

कांग्रेस इस समय मई 2024 में देश के तीन राज्यों हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक व तेलंगाना में सरकार चला रही है। इसके अतिरिक्त झारखंड व तमिलनाडु में सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल है। अभी कुछ माह पूर्व तक कांग्रेस राजस्थान व छत्तीसगढ़ में भी सरकार चला रही थी। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में केन्द्र में सत्ता में आने पर तीस लाख लोगो को नौकरी देने का वादा किया है। इससे पूर्व विधानसभा चुनावों के दौरान भी कांग्रेस ने विभिन्न राज्यों में बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकारी पदों को भरने से लेकर बेरोजगारी भत्ता तक देने का वादा किया था। यह अलग बात है कि अभी तक किसी भी राज्य में कांग्रेस अपना यह वादा पूरा नहीं कर पाई थी।

loksabha-election-2024-jobs-employmentसबसे पहले राजस्थान का उदाहरण लेते हैं-

2018 में भाजपा को हरा कर सत्ता में आई कांग्रेस ने दस दिन में किसानों के ऋण माफ करने और 21 से 35 साल तक के कक्षा 12 पास युवाओं को 3500 रुपये प्रतिमाह का बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था। कांग्रेस अपना एक भी वादा निभा नहीं पाई और 2023 में विधानसभा चुनाव हार गई। हालात यह रहे कि कांग्रेस ने सरकारी पदों को भरने के लिए जितनी भी भर्तियां निकाली सब पेपर लीक की वजह से अटक गईं। जिन पदों पर भर्ती कर भी दी गई, उन सबमें हुए घोटाले के चलते सरकार जाने के बाद भी कार्यवाही चल रही है। दर्जनों गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। कांग्रेस ने बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था। इस योजना के तहत राजस्थान के करीब बीस करोड़ युवा पंजीकृत हए थे। पांच साल में सरकार केवल करीब दो लाख युवाओं को ही बेरोजगारी भत्ता दे सकी। यही हाल छत्तीसगढ़ का भी रहा। जिन राज्यों में कांग्रेस इस समय सत्ता में है, वहां भी इनकी घोषणाओं का क्या हाल हो रहा, यह आसानी से जाना जा सकता है।

loksabha-election-2024-jobs-employmentसमाजवादी पार्टी ने भी सिर्फ बेरोजगारों की कतारें लगवाई

अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी ने 2012 के विधानसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में पहले 30 से 40 वर्ष की आयु वाले कक्षा दस उत्तीर्ण बेरोजगारों को एक हजार रुपये प्रति माह की दर से बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान  किया था। इस योजना पर प्रति वर्ष 16 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान था। सत्ता में आने के बाद इस योजना के लिए 11 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।  मई 2012 में योजना की घोषणा करने के बाद रजिस्ट्रेशन की शुरुआत की गई तो जनता का कोई खास उत्साह नहीं दिखा। इसके बाद योजना में 25 से 40 साल तक के लोगों को शामिल करने का प्रावधान किया गया। इसके तहत करीब 96 हजार युवाओं का शुरुआत में चयन किया गया। जिलों में कार्यक्रम आयोजित कऱ बेरोजगारी भत्ता दिया गया। इसके बाद लैपटॉप योजना की तरह यह योजना भी गायब हो गई। 2014 और इसके बाद बेरोजगारी भत्ता योजना के लिए कोई खास आवंटन नहीं किया गया। बताया गया कि प्रदेश सरकार के पास भत्ता देने के लिए पैसे ही नहीं हैं। जाहिर सी बात है कि बजट के अभाव में एक वर्ष बाद ही यह योजना दम तोड़ गई। करोड़ो युवा बेरोजगारी भत्ता देने का इंतजार ही करते रहे गए।

loksabha-election-2024-jobs-employment loksabha-election-2024-jobs-employment साढ़े आठ करोड़ बांटने को खर्च किए 12.5 करोड़

मजे की बात यह है कि 2012-13 इकलौता वर्ष था जब बेरोजगारी भत्ता बांटा गया। इसके बाद बेरोजगारी भत्ता देने के लिए सरकार बजट ही आवंटित नहीं कर पाई। जिस एक वर्ष में भत्ता बांटा गया, उस वर्ष भी अखिलेश सरकार ने 8.49 करोड़ का भत्ता बांटने के लिए 12.5 करोड़ रुपये खर्च किए थे। बेरोजगारी भत्ता बांटने में यह जो खर्च किया गया था, इस पर सीएजी ने भी अपनी रिपोर्ट में गंभीर सवाल उठाए थे।

Politics Of Unemployment : सात लाख रिक्त पद भी नहीं भर पाए थे अखिलेश

समाजवादी पार्टी ने 2012 में जब सत्ता संभाली थी, उस समय प्रदेश में करीब सात लाख पद सरकार में रिक्त थे। इसमें करीब 2.5 लाख पद पुलिस में, 2.6 लाख पद शिक्षा विभाग में, करीब दो लाख पद अन्य विभागों में रिक्त थे। अपने पांच साल के कार्यकाल में अखिलेश यादव इनमें से एक तिहाई पद भी भर नहीं पाए थे। उनके जमाने में हुई अधिकांश नियुक्तियां भ्रष्टाचार व भाई भतीजावाद की भेंट चढ़ गईं थीं। लोकसेवा आयोग भी भ्रष्टाचार का बड़ा अड्डा बना दिया गया था। हाईकोर्ट के आदेश पर कई मामलों में शुरु हुई सीबीआइ जांच अभी तक जारी है।

बेरोजगारी दूर करने का वादा सिर्फ चुनावी झुनझुना ः
promise to eradicate unemployment is merely electoral rhetoric

कुल मिलाकर अनुभव यह बताता है कि बेरोजगारी दूर करने कांग्रेस व समाजवादी पार्टी समेत विपक्ष के वादे सिर्फ दिखावा भर रहे हैं। सत्ता प्राप्त करने के बाद इनमें से किसी ने भी युवाओं के लिए कुछ नहीं किया। यही वजह रही कि 2017 में समाजवादी पार्टी ने चुनाव से पहले सभी को स्मार्ट फोन देने की घोषणा की, पर जनता पर इसका असर नहीं हुआ। 2017 में सत्ता से बाहर होने के बाद समाजवादी पार्टी 2022 में भी सत्ता में वापसी नहीं कर सकी। जनता बार बार बेवकूफ बनने को तैयार नहीं थी।

Muslim Reservation के नाम पर मुसलमानों को भी अखिलेश सरकार ने दिया था धोखा

loksabha-election-2024-jobs-employmentमुसलमानों को आरक्षण (Muslim Reservation) देने  के लिए सिर्फ कांग्रेस ही उतावली नहीं रही है। एक वोट बैंक के रूप में काफी हद तक एक जुट रहने वाले मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए मुल्ला मुलायम सिंह यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी भी जबर्दस्त ढंग से लालायित थी। एक ढंग से देखा जाए तो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की होड़ लगी थी। समाजवादी पार्टी ने 2012 के अपने घोषणापत्र में मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था। यह आरक्षण ओबीसी कोटे में दिया जाना था। पार्टी ने कहा था कि सच्चर कमेटी की अनुशंसा के अनुसार केन्द्र सरकार से बात करके मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। यह अलग बात है कि पांच साल बीत जाने के बाद भी सरकार मुसलमानों को आरक्षण नहीं दे पाई। इसे लेकर मुसलमानों में खासी नाराजगी रही। सोशल मीडिया पर अभी तक सपा के घोषणापत्र की फोटो लगाकर सवाल उठाए जाते रहे।

OBC के अधिकार पर Muslim Reservation से किया था वार

मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं की गई थी वरन ओबीसी कोटे में ही मुसलमानों को सीटें दी गईं थीं। इस बात की जानकारी विधान परिषद में नेता सदन रहे तत्कालीन मंत्री अहमद हसन ने बताया था कि 18 जुलाई 2007 को जारी शासनादेश के अनुसार अन्य पिछड़ा वर्ग के 27 फीसद आरक्षण में ही मुस्लिम समुदाय को भी प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय के लिए अलग से कोई कोटा निर्धारित नहीं है।

पुलिस भर्ती में 18 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण किया था लागू

loksabha-election-2024-jobs-employmentसमाजवादी पार्टी ने मुसलमानों को घोषणापत्र में मुसलमानों को आरक्षण देने का 2012 में वादा किया था, उसे तो पूरा नहीं कर पाए पर अखिलेश यादव ने पुलिस भर्ती में 18 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की कोशिश की थी। इसमें पुलिस भर्ती आयोग को निर्देश दिया गया था कि भर्ती में 18 प्रतिशत मुसलमानों को चयनित किया जाए। इतना ही नहीं, अखिलेश यादव ने थानों की तैनाती में भी पुलिस कोटा लागू किया था।

आठ जून 2012 को विधान परिषद में प्रश्नकाल के दौरान उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री और सदन के नेता अहमद हसन ने बीएसपी के अब्दुल हन्नान के सवाल के जवाब में कहा कि प्रदेश में अल्पसंख्यक समुदाय के 18 इंस्पेक्टरों और 81 सब-इंस्पेक्टरों को थाना प्रभारी का चार्ज दिया गया है। थाना प्रभारियों के पदों पर मुस्लिमों की तैनाती के बारे में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि शासन की ओर से जारी आदेशों के तहत प्रदेश में अल्पसंख्यक समुदाय का कोटा पूर्ण है।

politics of unemploymentलैपटॉप व टैबलेट देने में भी युवाओं के साथ किया गया था धोखा

2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश व मुलायम सिंह यादव ने हर वर्ष कक्षा 12 उत्तीर्ण करने वालों को लैपटॉप और कक्षा दस उत्तीर्ण करने वालों को टैबलेट देने का वादा अपने घोषणापत्र में किया था। इस चुनावी घोषणा के अनुसार सत्ता में आने के बाद 2012-13 में अखिलेश यादव ने लैपटॉप  व वितरण के लिए 2800 करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में किया था। इस दौरान 15 लाख लैपटॉप के आर्डर दिए गए। प्रदेश भर में समारोहो का आयोजन कर यह लैपटॉप बांटे गए।
मजे की बात यह है कि 2017 में जब सरकार बदली तो पता चला कि अखिलेश यादव सरकार ने 15 लाख लैपटॉप के आर्डर दिए थे पर बांटे थे सिर्फ छह लाख। बाकी नौ लाख लैपटॉप का क्या हुआ इसकी जांच के लिए योगी सरकार ने आदेश दिया था। खैर, यह घोटाले का मामला अगर छोड़ दिया जाए तो भी घोषणापत्र में फ्री में लैपटॉप व टैबलेट देने का वादा कर अखिलेश यादव व मुलायम सिंह यादव ने जनता के साथ जोरदार घोटाला किया था।

एक साल के बाद ही बंद हो गई लैपटॉप योजना, टैबलेट तो एक को भी नहीं  दिया गया

समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कक्षा 12 उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों को लैपटॉप व कक्षा दस उत्तीर्ण करने वालों को टैबलेट बांटने का वादा किया था। यह वादा पहले ही साल दम तोड़ गया। सरकार बनने के आठ माह में अखिलेश यादव सरकार ने जिलों में कार्यक्रम आयोजित कर लैपटॉप वितरण किया। इस दौरान भी सभी छात्रों को लैपटॉप नहीं दिए गए।

इसके बाद अगल तीन सालों तक किसी भी छात्र को लैपटॉप नहीं दिया गया। यहां तक कि 2013-14 व 2014-15 में प्रदेश के बजट में लैपटॉप के लिए एक भी रुपये का प्रावधान नहीं किया गया। 2016 में आगामी विधानसभा  चुनाव को देखते हुए अखिलेश सरकार ने योजना में परिवर्तन करके सिर्फ मेधावी छात्रों को लैपटॉप देने का प्रावधान किया. इसके लिए 2015-16 के बजट में सौ करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। यानि पहले वर्ष 2800 करोड़ रुपये का प्रावधान व पांचवे वर्ष में सौ करोड़ का प्रावधान किया गया। इससे कुछ बच्चों को लैपटॉप दिया गया। कक्षा दस उत्तीर्ण छात्रों को टैबलेट देने की योजना तो शुरू ही नहीं हुई।loksabha-election-2024-jobs-employment loksabha-election-2024-jobs-employment

Muslim Reservation : MY समीकरण में यादव बने रहे चारा, मुस्लिम “भाई” बन लेते रहे मजे

पांच वर्ष में शायद टैबलेट तो एक को भी नहीं  दिया गया

यह हाल तब रहा जबकि समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा चुनाव के दौरान राज्‍य के छात्रों को पूरी गणित बताते हुए लैपटाप व टैबलेट देने का वादा किया था। मुलायम ने कहा था कि इस साल यूपी बोर्ड इंटरमीडिएट में करीब 26 लाख और हाईस्‍कूल की परीक्षा में करीब 30 लाख छात्र-छात्राएं बैठेंगे। पिछले साल 80 फीसदी परिणाम गया था। अगर इस साल 70 फीसदी भी परिणाम गया, तो इंटरमीडिएट में करीब 18 लाख और हाईस्‍कूल में 21 लाख परीक्षार्थी पास होंगे।

अब अगर समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है तो वादे के अनुसार 18 लाख छात्रों को लैपटॉप देना होगा। एक लैपटॉप की कीमत अगर 15 हजार हुई, तो करीब 2700 करोड़ रुपए का खर्च आयेगा। वहीं हाईस्‍कूल के करीब 21 लाख छात्र-छात्राओं को टैबलेट देने के लिए 525 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यहां एक टैबलेट की कीमत 2500 रुपए लगाई गई है। तो कुल मिलाकर सरकार पर 3225 करोड़ रुपए का खर्च आयेगा। विरोधी दल इसे नामुमकिन करार दे रहे हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि मायावती अगर मूर्तियों पर 6500 करोड़ रुपए खर्च कर सकती हैं, तो मुलायम छात्र-छात्राओं को लैपटॉप और टैबलेट देने के लिए 3225 करोड़ रुपए क्‍यों नहीं खर्च कर सकते।

मोदी राज में देश में घटी बेरोजगारी दर : Unemployment under control during modi raj

भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले  पांच वर्ष में बेरोजगारी दर घटी है। 15 वर्ष से उपर के युवाओं में 2023 में बेरोजगारी दर 3.1 प्रतिशत रही। इससे पूर्व 2017-18 में बेरोजगारी दर सात प्रतिशत से अधिक थी। 2021 में यह 4.2 प्रतिशत हुई और 2022 में 3.6 प्रतिशत बेरोजगारी दर रही। भारत सरकार के अनुसार बेरोजगारी दर घटने के पीछे मुद्रा व अन्य योजनाओं के माध्यम से स्वरोजगार सृजन व निजी क्षेत्र के विस्तार से निजी क्षेत्र की नौकरियों में आई तेजी जवाबदार रही है।

देश के सभी बेरोजगारों को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं

वैसे भी आज के पढ़े लिखे युवा इतना तो समझ ही सकते हैं कि देश के सभी बेरोजगारों को कोई भी सरकार नौकरी नहीं दे सकती। फिर सरकार चाहे जिस दल की हो। सरकारी नौकरी संख्या बहुत सीमित है। ऐसे में 90 प्रतिशत युवाओं को स्वरोजगार या निजी क्षेत्र में नौकरी की ओर जाना ही पड़ता है। इसलिए अगर वह अपना भविष्य बेहतर बनाना चाहते हैं, तो चुनावी झुनझुनों में फंसने की जगह अपना करियर बेहतर बनाने के लिए जरूरी योग्यता व तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करें।

Muslim Reservation : मुसलमानों की दीवानी कांग्रेस, भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाकर ही मानेगी

 

 

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